कबीर दास जी के दोहे
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर। आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास...
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर। आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास...
मैं जानूँ मन मरि गया, मरि के हुआ भूत।प्रेमनगरी है दूर की, अब क्यूं बाँधे...
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ। एकै आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित...
पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार।याते ये चक्की भली, पीस खाय संसार।। “अगर...
“साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय॥” Translation “ऐसा साधु...